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जल है जहाँ / नंदकिशोर आचार्य
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नदी उमड़ी नहीं आती है
सागर ही है
जो बहता रहता है नदी की ओर।
नहीं तौ कैसे बहे वह
किस तरह सागर रहे वह
बिन बहे ?
तभी तो नदी पर्वत से नहीं
सागर से बहती है
कि सागर रहे।
बल्कि क्या है नदी भी ?
वह पाट
जल जिस पर होकर गुजरता है
और जो बहता है जल
सागर है
बल्कि जल होना ही बहना है
और वह भी सदा बहता है
खुद ही की ओर।
इसलिए जल है जहाँ सागर भी वहीं है
तो तुम्हारी आँख क्यों सागर नहीं है ?
(1976)