तू जो मेरी आस नहीं है
जीने का अहसास नहीं है
यद्यपि कुछ संत्रास नहीं है
पर वैसा उल्लास नहीं है
जाने उसको क्या प्यारा हो
कुछ भी मेरे पास नहीं है
यूँ तो दुनिया भर के रिश्ते
लेकिन कोई ख़ास नहीं है
भागीरथी नहीं हर नदिया
हर पर्वत कैलाश नहीं है
कैसा सपना दूं आँखों को
अब ये ही विश्वास नहीं है
मृगमरीचिका जीवन बीता
जल है तो अब प्यास नहीं है
खोजूँ मैं ‘आनंद’ कहाँ पर
जब वो खुद के पास नहीं है