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जल / ममता किरण
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जल है तो जलचर है
जल है तो पशु पक्षी हैं
जल है तो प्राणी हैं
जल है तो पेड़ पौधे हैं
जल है तो जीवन है
जल ! मैं पूछती हूँ तुमसे
ऐसा क्या है तुममें
कि तुम समाए हो सबमें
होता है तुमसे रश्क़
काश ! मैं भी जल हो पाती
पार कर पाती
ऊँचे-नीचे, टेढ़े-मेढ़े रास्ते
शान्ति और सौम्यता से
गुज़र पाती
उन तमाम कँकड़ों से
जो मेरी राह में आते
अर्चना कर हर लेती
लोगों का दुख-दर्द
सिर्फ़ एक घूँट बन देती
लोगों को जीवनदान
दुखों से भरे उन तमाम हृदयों को
भेद पाती
अश्रु बन उनकी संगी कहलाती
तर्पण बन करती उद्धार
काश ! मैं जल हो पाती ।