भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जल / सपना मांगलिक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जल जीवन है,जल ही धन है
जल बिन धरती उजड़ा वन है
जहाँ देखो वहां जल की माया
बिन जल असंभव अन्न ,पेड़, छाया
मचे त्राहि-त्राहि जल बिन क्षण -क्षण
हो पशु -पक्षी या फिर कोई जन
जल वाष्प बदरा बन छाये
बिन जल सावन सोचो क्या बरसाए?
गरमी भीष्ण जीवन कहीं ना
धरा है गहना ,और जल नगीना
मैला कचरा बहाकर जल में
सोचो जरा क्या पाओगे?
जब जल ही ना होगा तब बोलो
तुम भी कहाँ जी पाओगे?
ना करो व्यर्थ जल को बच्चो
करो संरक्षण धरा पर इसका
जल हो रहा अब यहाँ पर कम है
जल जीवन है जल ही धन है
जल बिन धरती उजड़ा वन है