भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जळ महिमा / दीपसिंह भाटी 'दीप'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

महिमा जळ री मोकळी, देवन को जळ देव।
कर बांधे जळ री करो, साचै हिरदै सेव।। 1।।

जळ ब्रह्मा जळ विष्णुजी, जळ ई शिव जोगेश।
जळ रमैह जगजामणी , प्रगटे जळ परमेश।।2।।

जळ लिछमी जळ सुरसती ,जळ माता जगदंब।
उदक वारि पय नीर अम्बु ,थिर जग राखण थंभ।।3।।

जीव सिरज्यो जगतधर ,पंचतत कर्यो प्रकाश।
पैल जळ पछै प्रीथमी, अगनी वात अकाश।।4।।

जळ जीवां रो जीव है , उपजावै जळ अन्न।
मेल धुपावै मोकळो , ताजो राखैह तन्न।।5।।

पाप कटै अर पुन थपै , समरथ होत शरीर।
मुगती कारज मानवी , न्हावैह गंगा नीर।।6।।

जळ सूं जड़-चेतन जिये , कुदरत तणो कमाल।
हरखावै जळ हीवड़ो , धीणा धान धमाल।।7।।

मछियां डेडर मगरमछ, घड़ियल दरियाघोड़।
जळ असंखां जीवड़ा , कै लाखां कै क्रोड़।।8।।

जळ जमावै जमानो, कदै पड़े जळ-काळ।
दया करै जळ-देवता, सालो साल सुकाळ।। 9।।

सावण जळ सरसावियो, मेघा करै मलार।
सखियां रमवा सांचरी, सज सोळे सिणगार।। 10।।

हरदम हरियाळी हुवै, जळ बरस्यां जबरेल।
जळ करदे जग जीवतो, खरो कुदरती खेल।। 11।।

कोपे जळ मंह कूदियो, जळ मिल्या जगदीश।
अजमलजी घर आविया, धणी द्वारकाधीश।। 12।।

जळ बरसे हरसे जगत, घणो मचै गेघाट।
मुसकावै मन-मोरियो, थरपै चौदिश थाट।। 13।।

पलपल पसरै प्रदुषण, जळ घुळ रहियो जैर।
अब तो चेतो आदमी, काल बरपसी कैर।। 14।।

जल है तोई ज कल है , सोचो सकल संसार।
जळ रो कर्यो न जाबतो ,(तो)आगे घोर अंँधार।।15।।

जल है तोईज कल है , परसूं रो न पतोह।
जळ संभाळ घीरत जिम ,मिनखां करो मतोह।।16।।

दूषित जळ दुख देवसी , रोज फैलसी रोग।
कमती बचियो कुदरती,जळ जग पीवण जोग।17।।

जळ सहेजण करो जुगत , बोहळा बंधा बांध।
फसल होवसी फूठरी , रस घी दूधां रांध।।18।।

बातां करता बूढिया, जळ बरताओ जोय।
पाणी ढोळ्यां पाप छै, हरि घर लेखो होय।। 19।।

पग पग पांणी पूजता, मिनख राखता मान।
हथोपाइ सूं हालता, सातां दिनां सिनान ।। 20।।

जगत भयो जळ-कूकड़ी, पल पल खर्चे पाणीह।
ईंधण कुण से आवसी, म्हूं रांणी तुं रांणीह।। 21।।

बरखाजळ शुध वापरो, हर घर टांका होय।
अमरत जळ छत ऊतरै, कष्ट न व्यापै कोय।। 22।।

नाडा खणाओ नेमरा , आछो रखोह आगोर।
हरदम लेवे हबवळा , मिरदू जळ आंसू मोर।।23।।

बूंद बूंद जळ वापरो , जाजा करोह जतन।
जळ बिन दुर्लभ जीवणो,धर पर अमोलक धन।।24।।

देवी वरणे’दीपियो’, पांणी गयो पताळ।
समझू होय बांधो सदा, पांणी आडी पाळ।। 25।।