जवानी आते ही चेहरे पे जब पिंपल निकल आया
किसी की नरगिसी आँखों का सब काजल निकल आया
मेरे घर में तुम्हारी याद का सन्दूक रक्खा है
उसे खोला तो फिर बीता हुआ हर पल निकल आया
कभी वो भी ज़माना था फ़क़ीर ऐसे भी होते थे
जहाँ एड़ी ज़रा रगड़ी वहीं पर जल निकल आया
जहाँ पर शाम ढलते ही बिछाते थे कभी बिस्तर
हमारे घर की उस छत पर अब इक पीपल निकल आया
हुआ करती थी रौनक़ जिस चमन में मेरी कुर्बत से
वहीं फुर्कत ़ से अब तेरी है इक जंगल निकल आया