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जवानी के मज़े / नज़ीर अकबराबादी

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क्या ऐश की रखती है सब आहंग<ref>इरादा, वक़्त</ref> जवानी।
करती है बहारों के तई दंग जवानी॥
हर आन पिलाती है मै<ref>शराब</ref> और बंग जवानी।
करती है कहीं सुलह कहीं जंग जवानी॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥1॥

अल्लाह ने जवानी का यह आलम है बनाया।
जो हर कहीं आशिक, कहीं रुसवा, कहीं शैदा<ref>मुग्ध, आसक्त, पागल</ref>॥
फंदे में कहीं जी है, कहीं दिल है तड़पता।
मरते हैं, सिसकते हैं, बिलखते हैं, अहा! हा! ॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥2॥

ने मै<ref>शराब</ref> का ना माजून<ref>कुटी हुई दवाओं का अबलेह</ref> के मंगवाने का कुछ ग़म।
ना दिल के लगाने का, न गुल खाने का कुछ ग़म॥
गाली का न, आंखों के लड़ाने का कुछ ग़म।
हंसने का, न छाती से लिपट जाने का कुछ ग़म॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥3॥

लड़ती है कहीं आंख, कहीं दस्त कहीं सैन।
झूठा है कहीं प्यार, किसी से है लगे नैन।
वादा कहीं, इक़रार कहीं, सैन कहीं, नैन।
नै जी को फ़राग़त<ref>फुर्सत</ref> है न आंखों के तई चैन।
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥4॥

उल्फ़त<ref>प्रेम</ref> है कहीं, मेहरो<ref>महरबानी</ref> मुहब्बत है, कहीं चाह।
करता है कोई चाह, कोई देख रहा राह॥
साक़ी<ref>शराब पिलाने वाली</ref> है सुराही है, परीज़ाद<ref>परी का पुत्र, अप्सरा-पुत्र</ref> हैं हमराह<ref>साथ</ref>।
क्या ऐश हैं, क्या ऐश हैं, क्या ऐश हैं वल्लाह<ref>ईश्वर की शपथ</ref>॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥5॥

चहरे पे अबानी का जो आकर है चढ़ा नूर।
रह जाती है परियां भी ग़रज़ उसके तईं घूर॥
छाती से लिपटती हैं कोई हुस्न की मग़रूर।
गोदी में पड़ी लोटे है चंचल सी कोई हूर॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥6॥

गर रात किसी पास रहे ऐश में ग़ल्तां।
और वां से किसी और के मिलने का हुआ ध्यां॥
घबरा के उठे जब तो गिरे पांव पर हर आं।
कहती है ”हमें छोड़ के जाते हो किधर जां“॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥7॥

रस्ते में निकलते हैं तो होती हैं यह चाहें।
वह शोख़<ref>चंचल</ref> कि हो बंद जिन्हें देख के राहें॥
खाँसे है कोई हंस के, कोई भरती है आहें।
पड़ती है हर एक जा से निगाहों पे निगाहें॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥8॥

तनते हैं अगर ऐंठ के चलते हैं अज़ब चाल।
जो पांव कहीं, राह कहीं, सैफ़ कहीं ढाल॥
खींचे हैं कहीं बाल, कहीं तोड़ लिया गाल।
चढ़ बैठे कहीं, हाथ कहीं मुंह को दिया डाल॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥9॥

जाते हैं तवायफ़<ref>वेश्या</ref> में तो वां होती है यह चाव।
कहती है कोई ”इनके लिए पान बना लाव“॥
कोई कहती है ”यां बैठो,“ कोई कहती है ”वां आव“।
नाचे है कोई शोख़, बताती है कोई भाव॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥10॥

हंस हंस के कोई हुस्न की छल बल है दिखाती।
मिस्सी कोई सुरमा, कोई काज़ल है दिखाती॥
चितवन की लगावट, कोई चंचल है दिखाती।
कुर्ती, कोई अंगिया, कोई आंचल है दिखाती॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥11॥

कहती है कोई ”रात मेरे पास न आये“।
कहती है कोई ”हमको भी ख़ातिर में न लाये“।
कहती है कोई ”किसने तुम्हें पान खिलाए“।
कहती है कोई ”घर को जो जाये हमें खाए“।
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥12॥

आया है जो कोई हुस्न का बूटा या कोई झाड़।
जा शोख से झट लिपटे यह पंजों के तई झाड़।
अंगिया के तई चीर के कुर्ती को लिया फाड़।
इख़लास कहीं, प्यार कहीं, मार कहीं धाड़॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥13॥

क्याा तुझ से ”नज़ीर“ अब मैं जवानी की कहूं बात।
इस पन<ref>आयु, उम्र</ref> में गुज़रती है अज़ब ऐश से औक़त<ref>समय</ref>॥
महबूब परीज़ाद चले आते हैं दिन रात।
सेरें हैं, बहारें, हैं, तबाजे़ है मदारात॥
इस ढब के मजे़ रखती है और ढंग जवानी।
आशिक़ को दिखाती है अज़ब रंग जवानी॥14॥

शब्दार्थ
<references/>