भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जवानी खुद अपनी पहचान / श्रीकृष्ण सरल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जवानी खुद अपनी पहचान
जवानी की है अद्भुत शान
जवानी खुद अपनी पहचान।

घिसट कर चलता बचपन है
लड़कपन अल्हड़ जीवन है
बुढ़ापा थका-थका चलता
जवानी ऊँची बहुत उड़ान
जवानी खुद अपनी पहचान।

जवानी लपटों का घर है
जवानी पंचम का स्वर है
जवानी सपनों की वय है
जवानी में जाग्रत अरमान
जवानी खुद अपनी पहचान।

जवानी के दिन करने के
जवानी के दिन भरने के
जवानी दिन भूचालों के
जवानी है उठता तूफ़ान
जवानी खुद अपनी पहचान।

जवानी को न गँवाए हम
भला कुछ कर दिखालाएँ हम
जवानी पश्चाताप न हो
जवानी हो संतोष महान
जवानी खुद अपनी पहचान।