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जवान होती लड़की / रवि पुरोहित
Kavita Kosh से
दालानी अमरबेल की
बढती लंबाई
लुकती-छिपती
झांकने लगी
टूटी खिड़की की
तराड़ से
पखाने के रोशनदान से,
आगंतुक के स्वागत बहाने
मुख्य दरवाजे से !
फ़िर छितराने लगी कद
घर की भींत के उपर से
गली की तरफ़
बेशर्म सी !
दादीमां ने कहा-
इस सियाले
छोरी के हाथ पीले कर ही दो !
राजस्थानी से अनुवाद: स्वयं कवि द्वारा