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जवान हो रही लड़की - पांच / कमलेश्वर साहू

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देखकर वापस खींचते
दूब में हिलगे
ओस की बूंद को
छेड़ने के लिये बढ़ा हुआ अपना हाथ
पहली बार सोचा मैंने
अब तक की
अपनी सोचों से परे
जवान हो रही उस लड़की के बारे में
ठीक ओस की बूंद के समान लगी वह मुझे
पहली बार हुई मेरी इच्छा
खींच लूँ
उसकी तरफ बढ़ा हुआ
अपना हाथ
जानते हुए
कि निरर्थक है मेरा जीवन
बगैर उसके !