जवाब दो कामरेड / शमशाद इलाही अंसारी
कामरेड ! याद है तुम्हे
तुम हमें गिनाते थे
समाजवादी देशों की बढ़ती हुई गिनती
जिसे बताते हुए
चमक उठती थी तुम्हारी आँखें
तप जाता था
तुम्हारा लहजा
जोश भरे लफ़्ज़ों की आँच में
मुझे याद है तुम्हारी उद्घोषणा
"पूँजीवाद मर रहा है"।
कामरेड ! याद है तुम्हे
तुम मुझे दिया करते थे
रूस में छपी, मोटी-मोटी किताबें
जिनके पहले सफ़े पर लिखा रहता था
"दुनिया के मज़दूरों एक हो"
रूस घूम कर आए
पार्टी के सब बडे़ नेतागण
अपनी प्रेस-कान्फ़्रेस में
करते थे शब्द- व्यायाम
लिखते थे यात्रा-संस्मरण।
कहते थे कि रूस में
एक नये मानव का जन्म हो गया है।
तुम यह कैसे नहीं समझ पाए
कि तुम्हारे द्वंदवाद को ठेंगा दिखाते हुये
वे अजर-आर्मिनियाई ही क्यों रहे?
तुम्हे यह कैसे दिखायी नहीं पडा़ कामरेड!
कि यह कथित नव-मानव ही
सत्तर साल के बाद भी,
लेनिन की मूर्ती उखाड़ फ़ेंकेगा
वह लिख देगा
मास्को में लगी मार्क्स की मू्र्तियों पर
"दुनिया के मज़दूरों, मुझे माफ़ कर दो"
तुम्ही तो
हंगरी, चेकोस्लोवाकिया
और अफ़ग़ानिस्तान में
लहु-लुहान रूसी फ़ौजी दख़ल-अंदाज़ी को
जाएज़ बताते थे।
लेकिन, इस जन- उबाल ने
मेरी आँखों से अब
तुम्हारी कहानियों की
पट्टियाँ उखा़ड़ दी हैं।
तुम भी तो यहाँ बंगाल में
पिछ्ले चौदह सालों में
क्या दे पाये हो आवाम को?
अब मैं तुम्हारी हर हरकत और लफ़्फ़ाज़ी पर
कडी़ निगाह रखूंगा।
अपनी पैनी दृष्टि से
देखूंगा तुम्हारे आर-पार।
अब तुम पहले की भाँति
प्रश्न करने वालों को
सी०आई०ए० का एजेंट नहीं कह सकते।
इस नव-मानव से जन्मे
प्रश्नों का उत्तर
तुम्हे खोजना होगा कामरेड !
रचनाकाल : 25.09.1991