भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जवाब / वंदना मिश्रा
Kavita Kosh से
तुम्हारे तीरों के जवाब में
फेकना था एक तीखा भाला
तुम्हारी तरफ
मैंने गुस्से में खोला
अपना शस्त्रागार
पर वहाँ सिर्फ
आँसू, फूल और दुआएँ थी
वही दे पाई तुम्हें