भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जश्ने वहशत मकतल देर तक नहीं रहता / अनवर जलालपुरी
Kavita Kosh से
जश्ने वहशत मकतल देर तक नहीं रहता
ज़हन में कोई जंगल देर तक नहीं रहता
ख़्वाब टूट जाते हैं दिल शिकस्त खाता है
बे सबब कोई पागल देर तक नही रहता
दिन गुज़रते रहते हैं उम्र ढलती जाती है
चेहरा-ए-हसीं कोमल देर तक नहीं रहता
आज की हसीं सूरत कल बिगड़ भी सकती है
आँख में कभी काजल देर तक नहीं रहता
खारदार राहों से दुश्मनी न कर लेना
पाँव के तले मख़मल देर तक नहीं रहता