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जसी / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रूप आगलि<ref>अग्नि</ref> होली वा धर्मावती राणी,
रूप आगलि होली सेली<ref>शील, चरित्र</ref> सीतली<ref>पवित्र</ref>।
भुका देखीक बा खाणू नी खांदी,
नांगा देखीक बस्तर नी लांदी।
जनी<ref>जैसी</ref> छई राणी बल तनी छयो राजा,
दान्यों मा दानी होलो बल हरिचन्द राजा,
रिंगदी<ref>घूमती</ref> डिंड्याली<ref>ऊपरी बैठक</ref> छै जैकी उड़दी<ref>उड़ती</ref> अटाली<ref>हवेली</ref>,
धारु<ref>पहाड़ी</ref> गरुड़े<ref>छानी, मवेशियों के लिए</ref> छै जैकी गाडू<ref>नदियों</ref> घटूडे<ref>घराट</ref>।
ढुंगा<ref>पत्थर</ref> जसो धन छयो मेघ जसो मन,
गाडू का ढुंगा पूजीन राजान, धारु का मशाण,
पर राजा का घर बेटा नी जरमे।
तब सुमरदो राजा पंचनाम देव,
जरमी गए नौनी एक वैकी देवतौं का वर न।
बुलौन्द राजा गया का बरमा<ref>ब्राह्मण</ref>, काशी का पंडित-
तुम मेरा बरमो, देखा मेरी कन्या को राश भाग?
भली होये नौनी तेरी राजा जसीली<ref>यशस्विनी</ref>, जसी नौ<ref>नाम</ref> की।
जौन<ref>चाँद</ref> सी टुकड़ी नौनी, फ्यूँली-सी कोंपली।
सेरा<ref>खेत</ref> का बीच जना साट्यों<ref>धान</ref> की बोटली,
तनी कबलांदी<ref>हरी-भरी</ref> डाली-सी वा ह्वै सुघर तरुणी।
वीरुवा भण्डारी होलो भडू मा को भड़,
नौं को ही बीर छयो बड़ा बाबू को बेटा।
लम्बी भुजा छई वैकी चौड़ी छई छाती,
वीरुवा भण्डारी वांको होलो ज्वान।
व्यौं की बात होये ढोल बज्या खुशी का,
नारैण आये लगसमी<ref>लक्ष्मी</ref> व्याण,
मादेवन जनी पारवती पाये।
वीरुवा जसी की बांधेणे मलेऊ<ref>हंस</ref> जसी जोड़ी।

अगासन<ref>आकाश</ref> जोन<ref>चाँद</ref> पाये फूल तै मिले भौंर।
धरती तै स्वाग<ref>सुहाग</ref> मिले, मनखी तैं भाग।
तब जसी बीरुवा को ह्वैगे माछी पाणी ज्यू,
एका बिना हैका<ref>दूसरा</ref> नी खांदो,
एक बिना हैको नी रन्दो।
द्वि होला वो पर एकी होलो शरील।
धातुओं मा सोनू जनो होन्द जसी-
तनी नारियों मा वा होली नार।
मायान<ref>प्रेम</ref> लुपटाणे जिकुड़ी वीं की,
शर्त<ref>शहद</ref> मा जनी होन्दी माखी<ref>मधुमक्खी</ref>!
घर बार भूले बीरुवा भूले संगसार।
तब एक दिन वै सुपिनो ह्वै गये-
सुपिना मा अपणो बुबा<ref>पिता</ref> देखे वैन-
चचड़ैक<ref>हड़बड़ाकर</ref> बैठे वीरु, भिबड़ेक<ref>भड़भड़ाकर</ref> बैठे।
मैं जान्दू गया जसी राणी,
मैंकू बणाऊं कलेऊ, गाड<ref>निकाल</ref> वस्तर मेरा।
तेरी माया<ref>प्रेम</ref> मेरा दगड़ी<ref>साथ</ref> ईश्वर की-सी छाँया।
मैना<ref>महीने</ref> दुय्येक<ref>दो-एक</ref> मा घर औलो,
आँगड़ी<ref>अंगरखा, ब्लाउज</ref> टालखी<ref>चुनरी</ref> त्वैक लौंलो
रोन्दी दणमण<ref>टपटप</ref> तब जसी नारी,
तुम होला स्वामी मेरा सिर का छतर,
गला की माला होला, स्वाग की बेन्दी!
छुड़ाये भण्डारीन वीं की अंग्वाल,
तब भण्डारी गया गैगे।
रातू की सेन्दी नी जसी तब, दिनू कू खांदी नी।

लांदी नी वा पैरेन्दी नी च,
वीं क तैं बस सोच एक ही होई च।
मैंलो ह्वैगे घुमैलो रूप वीं को,
फूल नी अलसै वा, घूल जसी ह्वैगे।
सासू छै वीं की पùावती,
व्वारी<ref>बहू</ref> देखी वीं की आँखी होंदी छई लाल,
ईन करे मेरा नौना पर जाप<ref>जादू</ref>,
बै का नौ अब बै<ref>माँ</ref> नी बोदो,
पूत पालीक होई ब्वारी भौंदो<ref>अधिकार</ref>।
दांत किटकारी सासू काल-सी भिटगदी<ref>उछलती</ref>।
भ्वाँ <ref>जमीन</ref> तड़गे<ref>पर</ref> तमानो<ref>मिजाज</ref> नी च ईं को,
अभागी राँड की जाई<ref>पैदा की</ref> या,
पाणी तक को स्वारी<ref>सहारा</ref> नी भरोसो जैंको।
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हलकदी<ref>हिलती-डुलती</ref> ढलकदी तब एक दिन जसी,
पाणी पंद्यारा<ref>पनघट</ref> पैटे<ref>गयी</ref>।
लोसेन्दी<ref>लौटती</ref> घाघुरी पैरी वींन, सूवा-पंखी<ref>चुनरी, दुशाला</ref> धरे।
हिंवालू<ref>हिमालय</ref> मा नन्दा जसी गागर लीक पाणीक गैगे।
पैटीन दीदी भुली चौदिशा बिटा<ref>से</ref>
बीच मा चलदी जसी गैणी<ref>तारा</ref> जनो<ref>जैसी</ref>।
दगड़ा<ref>साथ की</ref> दगड़याणी घर ऐन वर,
जसी पंद्यारा नहेन्दी च धोयेन्दी खूब कैकी।
तब हेरदे<ref>देखती</ref> वा छैलुड़ी<ref>छाया</ref> वा पाणी मांग<ref>में</ref>,
दुई छैल<ref>छाया</ref> देखीक वा चौदिशा नजर लांदी।

शब्दार्थ
<references/>