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जसुदा के अजिर बिराजें मनमोहन जू / आलम
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जसुदा के अजिर बिराजें मनमोहन जू,
अँग रज लागै छबि छाजै सुरपाल की ।
छोटे-छोटे आछे पग घुँघरू घूमत घने,
जासों चित हित लागै सोभा बालजाल की ।
आछी बतियाँ सुनाबै छिनु छाँड़िबौ न भावै,
छाती सों छपावै लागै छोह वा दयाल की ।
हेरि ब्रज नारि हारी वारि फेरि डारी सब,
आलम बलैया लीजै ऐसे नन्दलाल की ।