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जसुमति दौरि लिए हरि कनियाँ / सूरदास
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जसुमति दौरि लिए हरि कनियाँ ।
आजु गयौ मेरौ गाइ चरावन, हौं बलि जाउँ निछनियाँ ॥
मो कारन कछु आन्यौ है बलि, बन-फल तोरि नन्हैया ।
तुमहि मिलैं मै अति सुख पायौ, मेरे कुँवर कन्हैया ॥
कछुक खाहु जो भावै मोहन, दैरी माखन-रोटी ।
सूरदास प्रभु जीवहु जुग-जुग हरिहलधर की जोटी ॥
भावार्थ :-- यशोदा जी ने दौड़कर श्याम को गोद में उठा लिया । (बोलीं-)`मेरा लाल! आज गाय चराने गया था । मैं सर्वथा इस पर बलिहारी जाती हूँ मैं तेरी बलैया लूँ, मेरे नन्हे लाल ! मेरे लिये भी वन से कुछ फल तोड़कर लाया है? मेरे कुँवर कन्हाई ! तुमसे मिलने पर मुझे बहुत सुख मिला । मोहन ! जो भी अच्छा लगे, कुछ खा लो ।' (श्याम बोले-)`मैया मक्खन-रोटी दे।' सूरदास के स्वामी श्याम-बलराम की यह जोड़ी युग-युग जीवे ।