भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जस्त भरता हुआ दुनिया के दहाने की तरफ़ / अंजुम सलीमी
Kavita Kosh से
जस्त भरता हुआ दुनिया के दहाने की तरफ़
जा निकलता हूँ किसी और ज़माने की तरफ़
आँख बे-दार हुई कैसी ये पेशानी पर
कैसा दरवाज़ा खुला आईना-ख़ाने की तरफ़
ख़ुद ही अंजाम निकल आएगा इस वाक़िए से
एक किरदार रवाना है फ़साने की तरफ़
हल निकलता है यही रिश्तों की मिस्मारी का
लोग आ जाते हैं दीवार उठाने की तरफ़
दरमियाँ तेज़ हवा भी है ज़माना भी है
तीर तो छोड़ दिया मैं ने निशाने की तरफ़
एक बिछड़ी हुई आवाज़ बुलाती है मुझे
वक़्त के पार से गुम-गश्ता ठिकाने की तरफ़