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जहाँ-जहाँ पर ख़ूब भरोसा होता है / हरिवंश प्रभात
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जहाँ-जहाँ पर ख़ूब भरोसा होता है।
ना जानें क्यों वहाँ पर धोखा होता है।
लगता जब बादल को जल बरसाना है,
यहाँ वहाँ फिर क्यों पनसोखा होता है।
भूख पहुँचती जब अपनापन घर में,
वहाँ भी मिलता दुःख दर्द परोसा होता है।
लहज़ा ही पहचान बनाती लोगों की,
गाँव का रीति-रिवाज़ अनोखा होता है।
शांति उसको कहाँ मिलेगी जीवन में,
दौलत का जो सदा से भूखा होता है।
‘प्रभात’ बड़ों के आगे झुक कर बात करो,
पूर्वज का संस्कार यहाँ जो होता है।