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जहाँ उम्मीद थी ज़्यादा वहीं से खाली हाथ आए / रमेश तैलंग
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जहाँ उम्मीद थी ज़्यादा वहीं से खाली हाथ आए
बबूलों से बुरे निकले तेरे गुलमोहर के साए
मैं अपनी दास्ताँ तुझको सुनाता किस तरह बोलो
कलेजा मुँह को आया औ' कभी आँसू निकल आए
उदासी है कि पीछा छोड़ती ही है नहीं मेरा
कोई बैठा रहे कब तक दुआ में हाथ फैलाए
सुबह से काम पर निकला है बेटा और माँ का मन
हिलोरें ले रहा है, लौट कर वो जल्दी घर आए
किसी चेहरे को पढ़ना है अगर तो गौर से पढ़ना
कहीं ऐसा न हो सहरा भी दरिया-सा नज़र आए
हजारों लमहे जी कर ज़िन्दगी का ये मिला हासिल
तसल्ली से न जी पाए, तसल्ली से न मर पाए