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जहाँ कल था वहीं फिर आ गया हूँ / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
जहाँ कल था वही फिर आ गया हूँ
मगर सदियों तलक चलता रहा हूँ
मिरा घर इल्म का मरकज़<ref>केंद्र</ref> था लेकिन
जहालत<ref>अज्ञान</ref> के अँधेरे में पला हूँ
जहाँ वालों मुझे यूँ मत मिटाओ
किसी का मैं भी हर्फ़े-मुद्दुआ<ref>अभीष्ट शब्द</ref> हूँ
नहीं पहचानने का ये सबब है
तिरी आँखों से ख़ुद को देखता हूँ
मज़ारों की बुतों की आड़ ले कर
मैं अपने आप को पूजा किया हूँ
तिरा रुतबा नहीं तेरे ही दम से
तिरे जलवों में मैं भी रुनुमा<ref>प्रकट</ref> हूँ
नगर ने कर दिया मस्मूम<ref>विषैला</ref> मुझको
वगरना<ref>वरना</ref> मैं तो जंगल की हवा हूँ
शब्दार्थ
<references/>