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जहाँ जहाँ आभास मिलेगा हमें तुम्हारे होने का / रंजना वर्मा
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जहाँ जहाँ आभास मिलेगा हमें तुम्हारे होने का।
पल में वह मिट्टी का घर भी बन जायेगा सोने का॥
चरण तुम्हारे पड़े जहाँ वह धरती स्वयं पवित्र हुई
कष्ट न कोई करे उसे अब गंगा जल से धोने का॥
अमित प्यार से रिश्ता जोड़ा बन बैठे हम विषपायी
कैसे साहस करें अश्रु अब नयन कपोल भिगोने का॥
विरह तुम्हारा मधुर वेदना बन कर अंतर में छाया
रोम रोम में रम कर तुम अवकाश न देना रोने का।
मृदुल समृतियों का वातायन खुला रह गया अनजाने
आशंकित करता भय प्रतिपल हमें तुम्हारे खोने का॥