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जहाँ जहाँ पर पहुँचा घोड़ा / स्वप्निल श्रीवास्तव
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जहाँ जहाँ पर पहुँचा घोड़ा
घुड़सवार का बजा हथौड़ा ।
चरागाह पर पाया कब्ज़ा
चरवाहों को नाथा-जोड़ा ।
जिसने कभी न-नुकुर की
उसको तो जीभर के तोड़ा ।
जिसने उसकी बात न मानी
उसका वंश हुआ निगोड़ा ।
पाँव जमे है रक़ाब पर
और हाथ में चमके कोड़ा ।
बड़े-बड़ों को डँस जाएगा
विषधर है यह साँप का जोड़ा ।
किसी-किसी की मूढ़ी दाबी
और किसी की बाँह मरोड़ा ।
वटवृक्ष गमले में आए
पर्वत-पर्वत हो गए लोढ़ा ।
बड़े सूरमा हो गए पतई
कालनेमि ने किसको छोड़ा ।