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जहाँ जाता हूँ वहाँ सपने / नरेन्द्र जैन
Kavita Kosh से
मैं
जहाँ जाता हूँ
सपने बहुत हैं वहाँ
ज़मीन आसमान के बीच
रंग-बिरंगी पतंगों की तरह उड़ते रहते हैं सपने वहाँ
जहाँ मैं जाता हूँ
नीले पंखॊं वाले अश्वों पर बैठे
लगातार दौड़ रहे हैं बच्चे हरे मैदानों में
सारी रात जो टिमटिमाते रहते हैं ख़ामोश
सुबह चिड़िया बनकर चहचहाते हैं वहाँ सितारे
मैं जहाँ जाता हूँ
बनते-बिगड़ते हैं स्वर्ग-नरक वहाँ
आदमी औरत के सपनों में
बोलते रहते हैं कानों में लगातार
अजन्मे शिशु
जहाँ
जाता हूँ
मैं