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जहाँ तक बन पड़े अपनों की अनदेखी नहीं करना / गिरिराज शरण अग्रवाल
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जहाँ तक बन पड़े अपनों की अनदेखी नहीं करना
लहू पानी से गाढ़ा है, इसे पानी नहीं करना
शिकायत वे ही करते हैं कि जो कमज़ोर होते हैं
जहाँ तक हो सके तुमसे, यह कमज़ोरी नहीं करना
जो आसानी से मिल जाए, वो शय क़ीमत नहीं रखती
सभी करना, मगर जीवन में आसानी नहीं करना
सभी को साथ लेना है, सभी के साथ चलना है
अकेले रास्ता चलने की नादानी नहीं करना
मुहब्बत अर्थ रखती है, अकेलापन निरर्थक है
तुम्हें जीना है तो जीवन को बेमानी नहीं करना