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जहाँ देखो सियासत हो गई है / सुनीता काम्बोज
Kavita Kosh से
जहाँ देखो सियासत हो गई है
यही सबसे बुरी लत हो गई है
दुआ जाने लगी किसकी ये मुझको
मेरे घर में भी बरकत हो गई है
उड़ा देगा वह सारी ही पतंगे
उसे हासिल महारत हो गई है
रही इन्कार करती प्यार से ही
मगर वह आज सहमत हो गई है
बड़ा ख़ुदगर्ज़ निकला दिल हमारा
नई पैदा ये हसरत हो गई है
ये उसकी आँख में अब डर नहीं था
लगा उसको मुहब्बत हो गई है
चुनावी दौर का सारा असर ये
ग़रीबों की भी दावत हो गई है