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जहाँ पर आदमी ही आदमी / हरिवंश प्रभात
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जहाँ पर आदमी ही आदमी है।
वहाँ मत देखिए क्या-क्या कमी है।
धुआँ चारों तरफ़ घेरे हुए है,
फ़िज़ाओं में वह देखो धम-धमी है।
जहाँ पैदा नहीं है रोजगारों,
वहाँ सरकार किस बूते जमी है।
कभी तो ठन्डे दिल से तुम भी सोचो,
तुम्हारी ज़िन्दगी किस पर थमी है।
अगर तुम प्रेम से पत्थर उठा लो,
उसी की तह में देखो कुछ नमी है।
नहीं हरगिज़ कभी मायूस होना,
ख़ुशी या ग़म न कुछ भी दाइमी है।
नज़रिया तुम बदल दो सोचने का,
नज़र ‘प्रभात’ उनकी मौसमी है।