भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जहाँ पर नफ़रतों के ख़ुरदुरे दस्तूर होते हैं / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
जहाँ पर नफ़रतों के खुरदुरे दस्तूर होते हैं ।
वहाँ पर प्यार के क़िस्से बहुत मशहूर होते हैं ।।
ये रिश्तों के उजाले भी चमकते और बुझते हैं,
कहीं ये अश्क होते हैं कहीं सिन्दूर होते हैं ।
बदलते हैं जो कपड़ों की तरह अपने इरादों को
बहुत खुदगर्ज़ होते हैं बहुत मगरूर होते हैं ।
तुम्हारे गाँव में आकर मैं इतना जान पाया हूँ,
सभी रिश्ते यहाँ पर प्यार से भरपूर होते हैं ।
दिलों की इस शरारत को समझना है बहुत मुश्किल,
वही क्यूँ याद आते हैं जो हमसे दूर होते हैं ।
14-01-2015