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जहाँ पे डूब गया था कभी सितारा मिरा / नामी अंसारी
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जहाँ पे डूब गया था कभी सितारा मिरा
उसी उफ़ुक़ पे जहाँ-ताब है नज़ारा मिरा
यही हुआ कि परिंदे फ़ज़ा में तैर गए
न काम आईं मिरी बंदिशें न चारा मिरा
हवा-ए-दश्त भी मजनूँ-सिफ़त नहीं है अगर
तो इस मक़ाम पे शायद न हो गुज़ारा मिरा
अभी तो हर्फ़-ए-तमन्ना लिखा नहीं मैं ने
अभी से क्यूँ वरक़-जाँ है पारा पारा मिरा
न आग लगती न तक़्सीम-ए-जिस्म-ओ-जाँ होती
फ़ुगाँ कि शहर-ए-सितम पर नहीं इजारा मिरा
वो तीरगी है कि राह-ए-ख़याल भी गुम है
न आसमान है रौशन न इस्तिआरा मिरा
न कोई दश्त मुनव्वर हुआ न दर ‘नामी’
नवाह-ए-ग़ैर में जल बुझ गया शरारा मिरा