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जहाँ प्रात:काल शिप्रा का पवन / कालिदास
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दीर्घीकुर्वन्पटु मदकलं कूजितं सारसानां
प्रत्यूषेषु स्फुटितकमलामोदमैत्रीकषाय:।
यत्र स्त्रीणां हरति सुरतग्लानिमंगानुकूल:
शिप्रावात: प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकार:।।
जहाँ प्रात:काल शिप्रा का पवन खिले कमलों
की भीनी गन्ध से महमहाता हुआ, सारसों
की स्पष्ट मधुर बोली में चटकारी भरता
हुआ, अंगों को सुखद स्पर्श देकर, प्रार्थना
के चटोरे प्रियतम की भाँति स्त्रियों के
रतिजनित खेद को दूर करता है।