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जहाँ बसे अधम-से-अधम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
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जहाँ बसे
अधम-से-अधम
दीन-हीन जन;
उहँई विराजे तहार चरन;
सबसे पीछे, सबसे नीचे
सरवहारा लोग का बीचे!
जब तहरा के प्रणाम करिले हम
तब ना जानीं जे कहाँ
थम जाला हमार ऊ प्रणाम।
तहार चरन रहेला अपमानितन का लगे।
सबसे अधम दीन-हीन जनन क लगे।
हमार प्रणाम उहाँ तक पहुँच ना पावे,
हमार प्रणाम ओतना नीचे उतर ना पावे।
अहंकार हमार उहाँ पहुँच ना पावेला।
जहाँ दीन-दरिद्र बनके तूभें फेर लगवेलऽ
सबसे पीछे, सबसे नीचे
सरवहारा लोग का बीचे।
हम खोजिले तहराके
धनी-मनी-सभेंपन्न लोग का लगें
तूं रहेलऽ उहाँ, जहाँ केहूँ ना रहे,
सबसे पीछे, सबसे नीचे,
सरवहारा लोग का बीचे
उहाँ हमरा हृदय पहुँच ना पावे
दलित-दीन हीन क लगे पहुँच न पवे।