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जहाँ में हम तुम्हें ही / राजश्री गौड़

Kavita Kosh से
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जहाँ में हम तुम्हें ही इश्क़ के क़ाबिल समझते हैं,
तुम्हीं को अपनी राह-ए-ज़ीस्त की मंजिल समझते हैं।

जिन्होंने हर घड़ी मेरे तग़ाफुल में लगा दी है,
वो माहिर खुद को कहते हैं हमें जाहिल समझते हैं।

सितम इतना किया तुमने कि हम कुछ कह नहीं पाये,
मगर हम आज भी दर को तेरे मंज़िल समझते हैं।

मुहब्बत लफ़्ज आसां है मगर मुश्किल किया तुमने,
ख़ता-ए-दिल समझते थे ख़ता ए दिल समझते हैं।

उड़ा करती है ज़ख़्मों से हमारे इश्क की ख़ुशबू,
दिया जो कुछ भी है तुमने सुकूने दिल समझते हैं।

सितम करके जिन्होंने मेरे दिल को तोड़ ड़ाला है,
मगर मालूम है मुझको वही गाफिल समझते हैं,

डूबोया है कहाँ लाकर उसी ने हमको ऐ लोगो,
हमें मँझधार और खुद को ही वो साहिल समझते हैं।

वो जिनकी बदसलूकी को हुनर का नाम देती थी,
कि अपनी बद-मिजाजी को ही वो हासिल समझते हैं