जहाँ मैं लौटता हूँ / मिथिलेश श्रीवास्तव
यहाँ में कभी-कभार लौटता हूँ
यहाँ रोशनी बहुत कम है मुझे डर नहीं लगता
दोस्त मुझे पहचान लेते हैं कम रोशनी में भी
यही मेरा अपना शहर है
कल इस शहर को परेशान नहीं करता
बाज़ार यहाँ रोज़ लगता है रोज़ ख़रीदते हैं लोग
सुख-दुख
आलू प्याज़ नमक मिट्टी का तेल
वकील यहाँ पैसा तनिक अधिक लेता है
मुक़दमा लेकिन अपनों-सा लड़ता है
इस शहर के घरों में भी दरवाज़े हैं
खुले-खुले से या भिड़के हुए से
एक खटखटाने पर खुल जाते हैं कई दरवाजे
आधी रात सड़क पर किसी अजनबी को जाते हुए देख
खाँसना नहीं भूलती एक बुढ़िया दरवाज़े के पीछे से
दूध माँगता हुआ बच्चा रोना नहीं भूलता
पानी पीने के बहाने उठना और चापाकल चलाना
भूलते नहीं सोए हुए लोग
यहाँ हवा फैलाती है पूरे शहर पर
किसी स्त्री की सिसकियाँ ।