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जहाँ सुख है / अज्ञेय
Kavita Kosh से
जहाँ सुख है
वहीं हम चटक कर
टूट जाते हैं बारम्बार
जहाँ दुख है
वहाँ पर एक सुलगन
पिघला कर हमें
फिर जोड़ देती है।