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जहाँ से जो ख़ुद को / माखनलाल चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
जहाँ से जो ख़ुद को
जुदा देखते हैं
ख़ुदी को मिटाकर
ख़ुदा देखते हैं ।
फटी चिन्धियाँ पहिने,
भूखे भिखारी
फ़कत जानते हैं
तेरी इन्तज़ारी
बिलखते हुए भी
अलख जग रहा है
चिदानंद का
ध्यान-सा लग रहा है ।
तेरी बाट देखूँ,
चने तो चुगा जा,
हैं फैले हुए पर,
उन्हें कर लगा जा,
मैं तेरा ही हूँ इसकी
साखी दिला जा,
ज़रा चुहचुहाहट
तो सुनने को आ जा,
जो तु यों इछुड़ने-
बिछुडने लगेगा
तो पिंजड़े का पंछी
भी उड़ने लगेगा ।