जहां एक चिड़िया का डर आसमान छूता है / नीलोत्पल
जिस तरह शामिल होता हूँ जीवन में
बकबकाता हूँ
ग़ुस्से या अधीरता से
लड़खड़ाते जूझता हूँ
चाहे कोढ़ी के सामने फेंके सिक्के-सा
अचकचाया होऊं
या अपनी कलप छिपाने के लिए
मुस्कराता फिरूं
भिड़ना है मुझे अपनी ही असंगति से
चलना है दुनिया के साथ
जो कि बाहर से ज़्यादा उमड़ती है भीतर
यहाँ एक चिड़िया का डर आसमान छूता है
और सैकड़ों शब्द निकल जाते हैं जीभ लपलपाते
इसी मिट्टी में बदलता है रंग
चीज़ें हरी होने लगती हैं
मिलते हैं शब्द यहीं
मेरी बेचैनी शब्दों के लिए नहीं
है जीवन में उठ रहे अंतर्विरोधों को लेकर
जैसे कोई दरवाज़ा खुलने को है
और सारी इबारतें नक़्शा हैं इस व्यापक जीवन का
ख़ुद को खोता हूँ
लगता है आगे लहरें हैं
लहरों को ठेलती-तोड़ती हुईं
मेरे अंदर की सत्ता
इसी कशमकश का परिणाम है
मेरे लिए यही कविता है कि
मैं चुका नहीं हूँ
जीवन में गहरी होती जा रही फाँकों के बीच
ख़ुद को धर देने के लिए