Last modified on 24 जून 2011, at 00:22

जहां तुम देह पर बैठी धूल उतारोगे / शहंशाह आलम


तुम फिर एक नए देश
तुम फिर एक नई दुनिया
तुम फिर एक नए घर में
प्रवेश करने जा रहे हो
जहां कि तुम यात्रा की थकान
रास्ते के अचरज विस्मय
देह पर की धूल उतारोगे
धुंधलके को छोड़ोगे

तुम्हारे साथ इस रहस्यनगर की
अनंत कथा अनंत कविता और प्रेम
मित्रों की जीवंत हंसी
शत्रुओं की चालबाज़ी
इच्छा-अनिच्छा
बसंत पतझड़ झुटपुटे
दूब की नोक पर अटकी बूंद
शिखरों को घेरते हुए बादल
तुम्हारे अंगों को छूता नदीजल
और देवताओं के छल भी तो हैं
तुम्हारे साथ