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जहां तुम देह पर बैठी धूल उतारोगे / शहंशाह आलम
Kavita Kosh से
तुम फिर एक नए देश
तुम फिर एक नई दुनिया
तुम फिर एक नए घर में
प्रवेश करने जा रहे हो
जहां कि तुम यात्रा की थकान
रास्ते के अचरज विस्मय
देह पर की धूल उतारोगे
धुंधलके को छोड़ोगे
तुम्हारे साथ इस रहस्यनगर की
अनंत कथा अनंत कविता और प्रेम
मित्रों की जीवंत हंसी
शत्रुओं की चालबाज़ी
इच्छा-अनिच्छा
बसंत पतझड़ झुटपुटे
दूब की नोक पर अटकी बूंद
शिखरों को घेरते हुए बादल
तुम्हारे अंगों को छूता नदीजल
और देवताओं के छल भी तो हैं
तुम्हारे साथ