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जहां हम जी रहे थे सर उठाकर / जियाउर रहमान जाफरी
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जहाँ हम जी रहे थे सर उठाकर
वहाँ पर क्या मिला पत्थर उठाकर
भरी बरसात अब तक जी रहे हैं
अभी तक गाँव में छप्पर उठाकर
किराया सब निग़ल लेता है पैसा
रहें हम किस तरह से घर उठाकर
हमारी जिंदगी यायावरी है
कहीं भी चल दिए घर भर उठाकर
जहाँ देखा वहीं चूमा है मैंने
तुम्हारे नाम का अक्षर उठाकर
हम उसकी सल्तनत में जी रहे हैं
हमें वह फेंक दें बाहर उठाकर
मोहब्बत छोड़ कर अपनी हवेली
सुकूं से चल पड़ी बिस्तर उठाकर