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जहिया से मास्टर साहब बनला रसोइया / सिलसिला / रणजीत दुधु

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जहिया से मास्टर साहब बनला रसोइया
चउपट हो गेलय पढ़इया-लिखइया।

खुलते इसकुल मास्टर साहब जोहऽ हथ नोन तेल,
इधीरबुतरूअन लग जाहे खेले में खेल,
नाचे हे गावे हे करके ताऽ-थइया,
जहिया से मास्टर साहब बनला रसोइया।

सरकार मना कर देलक मास्टर के छुए से डंटा
पढ़ाय के घंटी छोड़ लगवऽ भोजन के घंटा
रोज एसएमएस करऽ हे केतना बुतरू खवइया,
जहिया से मास्टर साहब बनला रसोइया।

लग गेल अब चस्का आउ गेला चसक
मास्टर साहब गेला अपन पद से घसक
करके पेटकट्टी बुतरू के बनबऽ हथ रूपइया,
जहिया से मास्टर साहब बनला रसोइया।

इसकुल अब हो गेल तिकड़म के अखाड़ा
सभे बुझे हे एकरा में हे कमाय गाढ़ा
सभे कहे हमरो कुछ खिलवऽ हो भइया
जहिया से मास्टर साहब बनला रसोइया।

मास्टर के नय रह गेल पढ़ाय से कोय वास्ता
रोजे रिपोट लेके नापऽ हथ बी.आर.सी. के रास्ता
पढ़ाय काहे नय होवे नय हे कोय पुछवइया
जहिया से मास्टर साहब बनला रसोइया।