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जहि दिन अगे बेटी तोहरऽ जलम भेल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आज के समाज में बेटी उत्पन्न होने पर घर में विषाद छा जाता है। यह गीत इसी भाव से संबद्ध है। प्रस्तुत गीत से समाज में अर्थ की प्रधानता का संकेत मिलता है, जिससे माता का हृदय भी अपनी संतान के प्रति बदल जाता है।

जहि दिन अगे बेटी तोहरऽ जलम भेल, धरती उठल हहकार हे।
सास ननद बेटी मुखहुँ न बोलै, हरिजी के जियरा उदास हे॥1॥
जहि दिन अगे बेटी तोहरऽ बिहा भेल, धरती उठल झँझकार हे।
सास ननद मिली मँगल गाबल, हरिजी के जिया उदगार हे॥2॥
जौ<ref>अगर</ref> हमें जानतेॅ धिया जलम लेती, खैते में मरीच पचास हे।
मरिच के<ref>मिर्च के</ref> झाँसे झूँसे<ref>उत्कट गंध, जिससे नाम में सुरसुरी पैदा होती है</ref> धिया मरी जैती, छूटी जैत जीब के जंजाल हे॥3॥
सोंठवा पीपर हम चुल्हबा में झोंकतेॅ, तेलबा देतेॅ ढरकाय हे।
बिछायल सेज हम समेटी के राखतेॅ, हरिजी सेॅ रहतेॅ छपाय हे॥4॥
गारल<ref>गड़ा हुआ</ref> गरुआ<ref>गड़ा हुआ धन</ref> बेटी तहुँ उखरायल, तहुँ भेल सतरु हमार हे॥5॥

शब्दार्थ
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