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जहें नेह लागल दरदिए मिलल बा / रामरक्षा मिश्र विमल
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जहें नेह लागल दरदिए मिलल बा
कबो फूल कहवाँ अङनवा खिलल बा
कबो लहलहाइल ना बिरवा सपन के
नयनवा से कतनो जो पानी ढरल बा
पियावल जे अँजुरी में भरि-भरि के अमिरित
अँजुरिया उहे अब जहर से भरल बा
हटावत मिटावत इ थाकल उमिरिया
अन्हरिया करिखहा इ जमकल-जमल बा
लिखाइल कहाँ एक पाती,विमल’ के
कि उनका प केकर दु जादू चलल बा