भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़ंजीरें / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
स्त्री
काट रही है
ज़ंजीरें
थोड़ी-थोड़ी रोज़
और...
तड़प रही है
कट गई
ज़ंजीरों की
स्मृति में...।