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ज़ख़्मे-जिगर का हाल न उन की नज़र से पूछ / रतन पंडोरवी
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ज़ख़्मे-जिगर का हाल न उन की नज़र से पूछ
ये बात पूछनी है तो मेरी नज़र से पूछ
किस किस का दीन उस की शरारत से लूट गया
मुझ से न पूछ अपनी ही क़ाफ़िर नज़र से पूछ
तेरा जमाल सब के लिए दिल-पज़ीर है
लेकिन ज़रा हमारे भी ज़ौक़े-नज़र से पूछ
मरता है कोई और ख़बर तक नहीं तुझे
इतना तो ऐ तबीब! तू उस बे-ख़बर से पूछ
ख़त ही दिया कि उस ने ज़बानी भी कुछ कहा
जा ऐ नदीम! जा के ज़रा नामाबर से पूछ
ढल जाएंगी ये हुस्न की उठती जवानियाँ
ये राज़े-इंकिलाब तू शम्स-ओ-क़मर से पूछ
गो बे-हुनर के नाम से मशहूर है 'रतन'
उस के हुनर का राज़ किसी बा-हुनर से पूछ