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ज़ख़्मों का अनुवाद / हरकीरत हीर
Kavita Kosh से
रात भर मैं
करती रही ज़ख्मों का अनुवाद
रातभर घाव
बूंद-बूंद रिसते रहे
कुछ शब्द जो झुलस गए थे लकीरों से
रातभर अपना अर्थ
तलाशते रहे