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ज़ख़्म देता है बार बार हमें / कुसुम ख़ुशबू
Kavita Kosh से
ज़ख़्म देता है बार बार हमें
वो बना देगा शाहकार हमें
हाशिए पर खड़े हैं हम कब से
अपनी ग़ज़लों में अब उतार हमें
हम हैं ज़र्रों में हम सितारों में
जाओ करते रहो शुमार हमें
इसकी आमद पे दिल लरज़ता है
ज़ख़्म देती है ये बहार हमें
तू कभी शोख़ है कभी सादा
तुझपे आने लगा है प्यार हमें
एक क़तरे की प्यास थी लेकिन
दे दिया तुमने आबशार हमें
हमको जीना था जी लिये ख़ुशबू
कब तुम्हारा था इंतज़ार हमें