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ज़ख्मों को छीलकर न यों मरहम लगाइये / ऋषिपाल धीमान ऋषि
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ज़ख्मों को छीलकर न यों मरहम लगाइये
अब और ना अतीत का मातम मनाइये।
जो शख्स जानता नहीं आदाबे-दुश्मनी
उसको न भूल से कभी दुश्मन बनाइये।
वाकिफ़ हैं हम बख़ूब बुलंदी से आपकी
ऊंचा न अपने क़द ज़े स्वयं को दिखाइए।
बेशक पड़ोस में है, मगर आग, आग है
पहुंचे न आप तक, इसे फौरन बुझाइये।
पहले तो देख लीजिये खुद आइना हुज़ूर
'ऋषि' पर फिर आप कोई भी तुहमत लगाइये।