ज़ख्मे-दिल तुझसे मैं छुपाऊँ क्या ?
दर्द सहकर भी मुस्कुराऊँ क्या ?
हो इजाज़त तो तेरी महफ़िल में,
अपनी क़िस्मत को आज़माऊँ क्या ?
क्यों इशारों में कह रहा है तू,
साफ़ कह दे कि भूल जाऊँ क्या ?
यूँ तो ये दौर है लतीफ़ों का,
तुम कहो तो ग़ज़ल सुनाऊँ क्या?
ऐश-ओ-इशरत के वास्ते ऐ दिल !
दाँव ईमान का लगाऊँ क्या ?
सबका किरदार जो सजाता है,
आईना वो तुझे दिखाऊँ क्या ?
रोटी, कपड़ा, मकां मिले सबको,
ख्वाब ऐसे 'असर' सजाऊँ क्या ?