भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ख्म को करके हरा इस बार भी / अनिरुद्ध सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़ख्म को करके हरा इस बार भी
क्या मिला इसके सिवा इस बार भी

रात को पलकों से फिर वो गिर पड़ा
ख़्वाब आँखों में सजा इस बार भी

फिर न मिल पाएँगी अपनी मंज़िलें
बंद है हर रास्ता इस बार भी

कल जो वादा प्यार से तोड़ा गया
फिर वही वादा हुआ इस बार भी

हम अँधेरों से लड़ेंगे अब के फिर
मिल गया है हौसला इस बार भी