भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़ब्त कर ऐ हसरत-ए-दीद कुछ देर अभी है / अबू आरिफ़
Kavita Kosh से
ज़ब्त कर ऐ हसरत-ए-दीद कुछ देर अभी है
ग़ुज़रे थे वह जिस राह से वह राह यही है
एक जाम मोहब्बत का पिला के वह चल दिये
बाक़ी अभी भी तिश्नालबी तिश्नालबी है
एक हल्क-ए-ज़जीर है या गेसू-ए-जाना
दोश-ए-हया में कोई बदली सी उठी है
छेड़ो न इसे ऐ सबा जागा है कई रात
तक तक के उसी राह को अब आँख लगी है
अश्कों की पनहगाह आरिफ को ले सलाम
हर शाम तेरी ज़ात पे एक लाज बची है