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ज़माना आ गया रुसवाइयों तक तुम नहीं आए / बलबीर सिंह 'रंग'
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ज़माना आ गया रुसवाइयों तक तुम नहीं आए,
जवानी आ गई तन्हाइयों तक तुम नहीं आए।
धरा पर थम गई आँधी गगन में काँपती बिजली,
घटाएँ आ गईं अमराइयों तक तुम नहीं आए।
नदी के हाथ निर्झर की मिली पाती समुन्दर को,
सतह भी आ गई गहराइयों तक तुम नहीं आए।
किसी को देखते ही आपका आभास होता है,
निगाहें आ गई परछाइयों तक तुम नहीं आए।
समापन हो गया नभ में सितारों की सभाओं का,
उदासी आ गई अँगड़ाइयों तक तुम नहीं आए।
न शमादाँ हैं न परवाने ये क्या है रंग महफ़िल का,
कि मातम आ गया शहनाइयों का तुम नहीं आए।