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ज़माना कब कहाँ कैसा मिलेगा / सिया सचदेव
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ज़माना कब कहाँ कैसा मिलेगा
न तुझसा कोई न मुझसा मिलेगा
बिछड़ के मुझ से तुम को क्या मिलेगा
कहाँ इक दोस्त मुझ जैसा मिलेगा
मेरी आँखों की जानिब तुम ना देखो
यहाँ मौसम बहोत भीगा मिलेगा
मेरे कातिल को कोई इतना पूछे
मिटा के मुझको आखिर क्या मिलेगा
दिलों में प्यार का मौसम रहे तो
खिला हर शाख पर गुंचा मिलेगा
उसे सब दिल बातें बोल देंगे
ख़ुदा का नेक जो इक बंदा मिलेगा